अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं?

अनुप्रास अलंकार को वर्णानुप्रास भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का शब्दालंकार है, जिसमें एक ही वर्ण या वर्ण समूह की आवृत्ति बार-बार होती है। यह आवृत्ति वर्ण, व्यंजन या स्वर के रूप में हो सकती है।

उदाहरण:

  • "कत्ता काा**" ( वर्ण की आवृत्ति)
  • "नदी नदी नदी बहती" ( वर्ण की आवृत्ति)
  • "फूल खिे हैं गुलशन में" ( वर्ण की आवृत्ति)

अनुप्रास अलंकार के प्रकार:

  1. वृत्यनुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति एक ही पंक्ति में बार-बार होती है।
  2. श्लोकानुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति एक ही श्लोक में बार-बार होती है।
  3. अन्त्यानुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति पंक्ति के अंत में बार-बार होती है।
  4. श्रुत्यानुप्रास: जब एक ही ध्वनि की आवृत्ति बार-बार होती है।

अनुप्रास अलंकार का प्रभाव:

  • अनुप्रास अलंकार काव्य में माधुर्यचमत्कार और ओज का गुण लाता है।
  • यह काव्य को संगीतमय बनाता है और पठनीयता में वृद्धि करता है।
  • यह भावों को प्रभावशाली और गहन बनाता है।

उदाहरण:

  • "रघुति राघव** राजा ाम**" ( वर्ण की आवृत्ति)
  • "नदी नदी नदी बहती" ( वर्ण की आवृत्ति)
  • "फूल खिे हैं गुलशन में" ( वर्ण की आवृत्ति)

अनुप्रास अलंकार का महत्व:

  • अनुप्रास अलंकार काव्य को सुंदर और आकर्षक बनाता है।
  • यह पाठक के मन में भावनाओं को जगाता है।
  • यह काव्य को यादगार बनाता है।

निष्कर्ष:

अनुप्रास अलंकार एक महत्वपूर्ण काव्य अलंकार है। यह काव्य को सुंदर, आकर्षक और यादगार बनाता है।



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Bhaskar Singh

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