अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं?
अनुप्रास अलंकार को वर्णानुप्रास भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का शब्दालंकार है, जिसमें एक ही वर्ण या वर्ण समूह की आवृत्ति बार-बार होती है। यह आवृत्ति वर्ण, व्यंजन या स्वर के रूप में हो सकती है।
उदाहरण:
- "कलकत्ता काका**" (क वर्ण की आवृत्ति)
- "नदी नदी नदी बहती" (न वर्ण की आवृत्ति)
- "फूल खिले हैं गुलशन में" (ल वर्ण की आवृत्ति)
अनुप्रास अलंकार के प्रकार:
- वृत्यनुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति एक ही पंक्ति में बार-बार होती है।
- श्लोकानुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति एक ही श्लोक में बार-बार होती है।
- अन्त्यानुप्रास: जब एक ही वर्ण की आवृत्ति पंक्ति के अंत में बार-बार होती है।
- श्रुत्यानुप्रास: जब एक ही ध्वनि की आवृत्ति बार-बार होती है।
अनुप्रास अलंकार का प्रभाव:
- अनुप्रास अलंकार काव्य में माधुर्य, चमत्कार और ओज का गुण लाता है।
- यह काव्य को संगीतमय बनाता है और पठनीयता में वृद्धि करता है।
- यह भावों को प्रभावशाली और गहन बनाता है।
उदाहरण:
- "रघुपति राघव** राजा राम**" (र वर्ण की आवृत्ति)
- "नदी नदी नदी बहती" (न वर्ण की आवृत्ति)
- "फूल खिले हैं गुलशन में" (ल वर्ण की आवृत्ति)
अनुप्रास अलंकार का महत्व:
- अनुप्रास अलंकार काव्य को सुंदर और आकर्षक बनाता है।
- यह पाठक के मन में भावनाओं को जगाता है।
- यह काव्य को यादगार बनाता है।
निष्कर्ष:
अनुप्रास अलंकार एक महत्वपूर्ण काव्य अलंकार है। यह काव्य को सुंदर, आकर्षक और यादगार बनाता है।
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